Its Me..
Shashi Kumar Aansoo
शशि कुमार आँसू
From Village Aati, Kadirganj, Nawada
Correctly Located in TataNagar (Jamshedpur)
24 December 2013
Shashi Kumar Aansoo शशि कुमार आँसू
Be strong, but not rude
Be strong, but not rude. Be kind, but not weak. Be bold, but don’t bully. Be humble, but not shy. Be confident, but not arrogant.
Confidence is a tool you can use in your everyday life to do all kinds of cool stuff, not least to stop second-guessing yourself, manage your fears and become able to do more of the things that really matter to you.
#Inspiring
17 November 2013
HAPPY GURUPURAB
सत श्री अकाल जी
अज गुरुपर्व दियां आप सब नु लख लख वधाईयां
बाबा नानक सब ते अपनी मेहर बरसावे
ते त्वाडे घर गुरुपर्व खुशियाँ लै के आवे जी ....
"HAPPY GURUPURAB.May guru bless you and your family with peace,joy and lots of happiness. Stay blessed."
#Gurupurab #Nanak #Shashi #Jamshedpur
13 November 2013
The Scorpion and the Frog - Story
Original story (traditionally attributed to Aesop, who was born more than 2600 years ago) is written, and then coming back to this initial part, where the story is rewritten with a new attitude to life.
=== The Scorpion and the Frog (years later…) ===
A scorpion and a frog meet on the bank of a stream and the scorpion asks the frog to carry him across on its back. The scorpion carries a little green apple.
The frog asks, “How do I know you won’t sting me?”
The scorpion says, “Because if I do, I will die too, as we will sink together”
“Can you leave the apple here? The weight may be too much!” the frog says.
“Sorry, I cannot, this apple is as important as my life” replies the scorpion.
The frog is satisfied, and they set out, but in midstream the scorpion puts the apple on the head of the frog.
The frog feels the weight on its head and starts sinking a little bit and, with the corner of the eye, sees the scorpion stinging the apple again and again and again.
“What are you doing?!?!” asks the frog knowing that they both risk drowning, but because the scorpion doesn’t stop at all, the frog shouts with bubbles coming out from its mouth “Stop it now, crazy freak!”
When they arrive to the other side of the river, the tired frog asks “Why?”
Replies the scorpion: “It’s my nature to sting, but my brother drowned here with a frog a while ago, and I don’t want to end up like that. I cannot stop myself stinging, but better to sting this apple than you”.
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Whatever is our nature, we are all smart people who can always find a better way forward.
#ShashiKumar
07 November 2013
#Chhath : #छठ पूजा #ChhathiDala #Chhath Surya Shashthi
छठ पूजा
छठ पूजा पूजा व्रत
आधिकारिक नाम छठ पूजा पूजा
अन्य नाम छठ
अनुयायी हिन्दू, उत्तर भारतीय, भारतीय प्रवासी
उद्देश्य सर्वकामना पूर्ति
तिथि दीपावली के छठे दिन
अनुष्ठान सूर्यपसना
छठ पर्व या छठ कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। प्रायः हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलंवी भी मनाते देखे गए हैं।[1]
नामकरणEdit
छठ पर्व छठ, षष्टी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसिए व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल सष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया।
chhath
[2]
लोक आस्थाका पर्व - छठEdit
हमारे देशमें सूर्योपासनाके लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ । मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होनेके कारण इसे छठ कहा गया है । यह पर्व वर्षमें दो बार मनाया जाता है । पहली बार चैत्रमें और दूसरी बार कार्तिकमें । चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठीपर मनाए जानेवाले छठ पर्वको चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठीपर मनाए जानेवाले पर्वको कार्तिकी छठ कहा जाता है । पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फलप्राप्तिके लिए यह पर्व मनाया जाता है । इस पर्वको स्त्री और पुरुष समानरूपसे मनाते हैं । छठ व्रतके संबंधमें अनेक कथाएं प्रचलित हैं; उनमेंसे एक कथाके अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुएमें हार गए, तब द्रौपदीने छठ व्रत रखा । तब उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवोंको राजपाट वापस मिल गया । लोकपरंपराके अनुसार सूर्य देव और छठी मइयाका संबंध भाई-बहनका है । लोक मातृका षष्ठीकी पहली पूजा सूर्यने ही की थी । छठ पर्वकी परंपरामें बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है, षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगौलीय अवसर है । उस समय सूर्यकी पराबैगनी किरणें (ultra violet rays) पृथ्वीकी सतहपर सामान्यसे अधिक मात्रामें एकत्र हो जाती हैं । उसके संभावित कुप्रभावोंसे मानवकी यथासंभव रक्षा करनेका सामर्थ्य इस परंपरामें है । पर्वपालनसे सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभावसे जीवोंकी रक्षा संभव है । पृथ्वीके जीवोंको इससे बहुत लाभ मिल सकता है । सूर्यके प्रकाशके साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वीपर आती हैं । सूर्यका प्रकाश जब पृथ्वीपर पहुंचता है, तो पहले उसे वायुमंडल मिलता है । वायुमंडलमें प्रवेश करनेपर उसे आयन मंडल मिलता है । पराबैगनी किरणोंका उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्वको संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोनमें बदल देता है । इस क्रियाद्वारा सूर्यकी पराबैगनी किरणोंका अधिकांश भाग पृथ्वीके वायुमंडलमें ही अवशोषित हो जाता है । पृथ्वीकी सतहपर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुंच पाता है । सामान्य अवस्थामें पृथ्वीकी सतहपर पहुंचनेवाली पराबैगनी किरणकी मात्रा मनुष्यों या जीवोंके सहन करनेकी सीमामें होती है । अत: सामान्य अवस्थामें मनुष्योंपर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पडता, बल्कि उस धूपद्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवनको लाभ ही होता है । छठ जैसी खगौलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वीके भ्रमण तलोंकी सम रेखाके दोनों छोरोंपर) सूर्यकी पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतहसे परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई, पृथ्वीपर पुन: सामान्यसे अधिक मात्रामें पहुंच जाती हैं । वायुमंडलके स्तरोंसे आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदयको यह और भी सघन हो जाती है । ज्योतिषीय गणनाके अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मासकी अमावस्याके छ: दिन उपरांत आती है । ज्योतिषीय गणनापर आधारित होनेके कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है ।
छठ पर्व किस प्रकार मनाते हैं ?Edit
यह पर्व चार दिनोंका है । भैयादूज के तीसरे दिनसे यह आरंभ होता है । पहले दिन सैंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दूकी सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है । अगले दिनसे उपवास आरंभ होता है । इस दिन रात में खीर बनती है । व्रतधारी रात में यह प्रसाद लेते हैं । तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं । अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं । इस पूजा में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्ज्य है । जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां भक्तिगीत गाए जाते हैं । आजकल कुछ नई रीतियां भी आरंभ हो गई हैं, जैसे पंडाल और सूर्यदेवता की मूर्ति की स्थापना करना । उसपर भी रोषनाई पर काफी खर्च होता है और सुबह के अर्घ्यके उपरांत आयोजनकर्ता माईक पर चिल्लाकर प्रसाद मांगते हैं । पटाखे भी जलाए जाते हैं । कहीं-कहीं पर तो ऑर्केस्ट्राका भी आयोजन होता है; परंतु साथ ही साथ दूध, फल, उदबत्ती भी बांटी जाती है । पूजा की तैयारी के लिए लोग मिलकर पूरे रास्ते की सफाई करते हैं ।
उत्सव का स्वरूपEdit
छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते।
नहाय खायEdit
पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाइ कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।
लोहंडा और खरनाEdit
दूसरे दिन कार्तीक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
संध्या अर्घ्यEdit
तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।
शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है।
उषा अर्घ्यEdit
चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। ब्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।
व्रतEdit
छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं। पर व्रती ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की होती है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। ‘शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालोंसाल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।’
ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं। किंतु पुरुष भी यह व्रत पूरी निष्ठा से रखते हैं।
सूर्य पूजा का संदर्भEdit
छठ पर्व मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है, जिसे हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। हिंदू धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है।
सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है।
सूर्योपासना की परंपराEdit
भारत में सूर्योपासना ऋग वैदिक काल से होती आ रही है। सूर्य और इसकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण आदि में विस्तार से की गई है। मध्य काल तक छठ सूर्योपासना के व्यवस्थित पर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो गया, जो अभी तक चला आ रहा है। तालाब में पूजा करते हैं।
देवता के रूप मेंEdit
सृष्टि और पालन शक्ति के कारण सूर्य की उपासना सभ्यता के विकास के साथ विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग रूप में प्रारंभ हो गई, लेकिन देवता के रूप में सूर्य की वंदना का उल्लेख पहली बार ऋगवेद में मिलता है। इसके बाद अन्य सभी वेदों के साथ ही उपनिषद आदि वैदिक ग्रंथों में इसकी चर्चा प्रमुखता से हुई है। निरुक्त के रचियता यास्क ने द्युस्थानीय देवताओं में सूर्य को पहले स्थान पर रखा है।
मानवीय रूप की कल्पनाEdit
उत्तर वैदिक काल के अंतिम कालखंड में सूर्य के मानवीय रूप की कल्पना होने लगी। इसने कालांतर में सूर्य की मूर्ति पूजा का रूप ले लिया। पौराणिक काल आते-आते सूर्य पूजा का प्रचलन और अधिक हो गया। अनेक स्थानों पर सूर्य देव के मंदिर भी बनाए गए।
आरोग्य देवता के रूप मेंEdit
पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाने लगा था। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई गई। ऋषि-मुनियों ने अपने अनुसंधान के क्रम में किसी खास दिन इसका प्रभाव विशेष पाया। संभवत: यही छठ पर्व के उद्भव की बेला रही हो। भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ हो गया था। इस रोग से मुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गई, जिसके लिए शाक्य द्वीप से ब्राह्मणों को बुलाया गया था।
पौराणिक और लोक कथाएँEdit
छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएँ प्रचलित हैं।
रामायण सेEdit
एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशिर्वाद प्राप्त कियाथा।
महाभारत सेEdit
एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।
कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रोपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।
पुराणों सेEdit
एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।
सामाजिक/सांस्कृतिक महत्वEdit
छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व के लिए न विशाल पंडालों और भव्य मंदिरों की जरूरत होती है न ऐश्वर्य युक्त मूर्तियों की। बिजली के लट्टुओं की चकाचौंध, पटाखों के धमाके और लाउडस्पीकर के शोर से दूर यह पर्व बाँस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बरतनों, गन्ने के रस, गुड़, चावल और गेहूँ से निर्मित प्रसाद, और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है।
शास्त्रों से अलग यह जन सामान्य द्वारा अपने रीति-रिवाजों के रंगों में गढ़ी गई उपासना पद्धति है। इसके केंद्र में वेद, पुराण जैसे धर्मग्रंथ न होकर किसान और ग्रामीण जीवन है। इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है न पुरोहित या गुरु के अभ्यर्थअना की। जरूरत पड़ती है तो पास-पड़ोस के साथकी जो अपनी सेवा के लिए सहर्ष और कृतज्ञतापूर्वक प्रस्तुत रहता है। इस उत्सव के लिए जनता स्वयं अपने सामूहिक अभियान संगठित करती है। नगरों की सफाइ, व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का प्रबंधन, तालाव या नदी किनारे अर्घ्य दान की उपयुक्त व्यवस्था के लिए समाज सरकार के सहायता की राह नहीं देखता। इस उत्सव में खरना के उत्सव से लेकर अर्ध्यदान तक समाज की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है। यह सामान्य और गरीब जनता के अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा भाव और भक्ति भाव से किए गए सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन है।
छठ गीतEdit
लोकपर्व छठ के विभिन्न अवसरों पर जैसे प्रसाद बनाते समय, खरना के समय, अर्घ्य देने के लिए जाते हुए, अर्घ्य दान के समय और घाट से घर लौटते समय अनेकों सुमधुर और भक्ति भाव से पूर्ण लोकगीत गाए जाते हैं।
'केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मे़ड़राय
काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए'
सेविले चरन तोहार हे छठी मइया। महिमा तोहर अपार।
उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर।
निंदिया के मातल सुरुज अँखियो न खोले हे।
चार कोना के पोखरवा
हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी।
तिथिEdit
छठ पूजा के काल में घाट
दीपावली के छठे दिन से शुरू होने वाला छठ का पर्व चार दिनों तक चलता है। इन चारों दिन श्रद्धालु भगवान सूर्य की आराधना करके वर्षभर सुखी, स्वस्थ और निरोगी होने की कामना करते हैं। चार दिनों के इस पर्व के पहले दिन घर की साफ-सफाई की जाती है।
संदर्भEdit
[3]
↑ मुस्लिम महिलाएं भी करेंगी छठ पूजा
↑ : chhath
↑ chhathpuja.co
फ्ग्म्,ज्फ्ग्,मुज्ग झ्फ्घ्।उग द्फ्मुग्द्घ
बाहरी कड़ियाँEdit
chhathpuja.co अन्य जानकारी
छठ पूजा के बारे में विस्तृत जानकारी
छठ से सम्बन्धित अन्य बातें
छठ समाचार नवभारत टाइम्स पर
द • वा • ब
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साप्ताहिक व्रत
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पवित्र दिवस
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Last modified on 7 नवम्बर 2013
PrivacyChhath Also calledChhathi
Dala Chhath
Surya Shashthi
Observed byHindus, and Jains
TypeCultural, Historical, Religious
SignificanceTo thank Surya for bestowing the bounties of life on earth and fulfilling particular wishes
ObservancesPrayers and religious rituals, including puja and prasad, bathing in the Ganges, and fasting
Begins2 days prior to Kartik Shashthi
EndsThe day after Kartik Shashthi
DateKartik Shukla Shashthi
2013 date6-9 November[1]
Chhath (Devanagari: छठ, छठी, छठ पर्व, छठ पुजा, डाला छठ, डाला पुजा, सुर्य षष्ठी) is an ancient Hindu festival and only Vedic Festival dedicated to the Hindu Sun God, Surya.[2] The Chhath Puja is performed in order to thank Surya for sustaining life on earth and to request the granting of certain wishes.[3]
The Sun, considered the god of energy and of the life-force, is worshiped during the Chhath festival to promote well-being, prosperity and progress. In Hinduism, Sun worship is believed to help cure a variety of diseases, including leprosy, and helps ensure the longevity and prosperity of family members, friends, and elders.
The rituals of the festival are rigorous and are observed over a period of four days. They include holy bathing, fasting and abstaining from drinking water (Vratta), standing in water for long periods of time, and offering prashad (prayer offerings) and arghya to the setting and rising sun.
Although it is observed most elaborately in Bihar, Jharkhand, Eastern UP and the Terai regions of Nepal in modern times, and is more prevalent in areas where migrants from those areas have a presence, it is celebrated in all regions and major urban centers in India. The festival is celebrated in the regions including but not exclusive to the northeast region of India, Madhya Pradesh, Uttar Pradesh, Chhattisgarh, Chandigarh, Gujarat,[4] Delhi,[5] Mumbai[6] Mauritius, Fiji, Trinidad and Tobago, Guyana, Suriname, and Jamaica. .[7]
Date of the festival
HistoryEdit
It is believed that the Maga Purohits (modern days known as Shakya Dwipi Brahmins) were invited by local kings for their expertise in Sun worshiping. They started the tradition of Chhat Puja.
It is believed that the ritual of Chhath puja may even predate the ancient Vedas texts, as the Rigveda contains hymns worshiping the Sun god and describes similar rituals. The rituals also find reference in the Sanskrit epic poem Mahābhārata in which Draupadi is depicted as observing similar rites.
In the poem, Draupadi and the Pandavas, rulers of Hastinapur (modern Delhi), performed the Chhath ritual on the advice of noble sage Dhaumya. Through her worship of the Sun God, Draupadi was not only able to solve her immediate problems, but also helped the Pandavas later regain their lost kingdom.
It is also believed that Chhath was started by Karna, the son of Surya (Surya Putra Karna). Surya Putra Karna ruled over the Anga Desh (present day Bhagalpur district of Bihar) during the Mahabharat Age. He was a great warrior and fought against the Pandavas in the Kurukshetra War.
Its yogic/scientific history dates back to the Vedic times. The rishis of yore used this method to remain without any external intake of food as they were able to obtain energy directly from the sun's rays. This was done through the Chhath method.[10]
Chhathi MaiyaEdit
It is also said that the Goddess that is worshipped during the famous Chhath Puja is known as Chhathi Maiya. Chhathi Maiya is known as Usha in the Vedas. She is believed to be the consort of Surya, the sun god. Some scholars are of the view that she is only the beloved of Surya and some suggest that she is Surya’s wife.
Usha is the term used to refer to dawn – The first light of day. But in the Rig Veda she has more symbolic meaning. Symbolically Usha is the dawn of divine consciousness in the individual aspirant. It is said - Usha and Pratyusha, wives of Sun are the main source of Sun. Both Usha and Pratyusha are worshiped along with Sun in chhath parva. Usha (literally-the first morning sun-ray) is worshipped on the last day and Pratyusha(the last sun-ray of day) is worshipped in the evening by offering water or milk to the rising and setting sun respectively.
During the Chhath Puja, Chhathi Maiya is invoked to bless us with this divine consciousness which will help us to overcome all the troubles in the world – this bless will help us to Moksha or liberation.
Rituals and traditionsEdit
Chhath is a festival of bathing and worshipping,that follows a period of abstinence and segregation of the worshiper from the main household for four days. During this period, the worshiper observes purity, and sleeps on the floor on a single blanket.This is the only holy festival which has no involvement of any pandit (priest).The devotees offer their prayers to the setting sun, and then the rising sun in celebrating its glory as the cycle of birth starts with death. It is seen as the most glorious form of Sun worship.
Nahay khay
On the first day of Chhath Puja, the devotees take a dip, preferably in the river Ganga and carry home the holy water of Ganga to prepare the offerings. The house and surroundings are scrupulously cleaned. The ladies observing the Vrata called vratin allow themselves only one meal on this day.
Lohanda and Kharna
On the second day of Chhath Puja, the day before Chhath, the Vratins observe a fast for the whole day, which ends in the evening a little after sunset. Just after the worship of Sun and moon , the offerings of Rasiao-kheer (rice delicacy), puris (deep-fried puffs of wheat flour) and bananas, are distributed among family and friends. The Vratins go on a fast without water for 36 hours after 2nd day evening prashad(kheer).
Sandhya Arghya (evening offerings)
This day is spent preparing the prasad (offerings)at home. On the eve of this day, the entire household accompanies the Vratins to a riverbank, pond or a common large water body to make the offerings (Arghya) to the setting sun. It is during this phase of Chhath Puja that the devotees offer prayers to the just setting sun. The occasion is almost a carnival. Besides the Vratins, there are friends and family, and numerous participants and onlookers, all willing to help and receive the blessings of the worshipper. The folk songs sung on the evening of Chhath.
Usha Arghya (morning offerings)
On the final day of Chhath Puja, the devotees, along with family and friends, go to the riverbank before sunrise, in order to make the offerings (Arghya) to the rising sun. The festival ends with the breaking of the fast by the Vratins. Friends, Relatives visit the houses of the devotees to receive the prashad.
The main worshipers, called Parvaitin (from Sanskrit parv, meaning 'occasion' or 'festival'), are usually women. However, a large number of men also observe this festival. The parvaitin pray for the well-being of their family, and for the prosperity of their offsprings. Once a family starts performing Chhatt Puja, it is their duty to perform it every year and to pass it on to the following generations. The festival is skipped only if there happens to be a death in the family that year.
The prasad offerings include sweets, Kheer, Thekua and fruit offered in small bamboo soop winnows. The food is strictly vegetarian and it is cooked without salt, onions or garlic. Emphasis is put on maintaining the purity of the food.
03 November 2013
13 October 2013
आपको दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ
Nippy autumn mornings, chanting of hymns, dulcet whiffs of incense sticks & echoes of mystic mantras.
………………………………………………………
May Maa Durga empower you and ur family
With her nine swaroopa of Name, Fame, Health, Wealth, Happiness, Humanity, Education, Bhakti & Shakti.
आपको सबको दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
10 October 2013
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ कब हारा ?
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन सम्पूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की।
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।
05 October 2013
02 October 2013
Gandhi गाँधी
Live as if you were to die tomorrow. Learn as if you were to live forever.” Mahatma #Gandhi
Salutations on his birthday!
#GandhiJayanti
25 September 2013
To love someone…
To love someone
is nothing,
To be loved by someone
is something,
To love someone who
loves you is everything.
24 September 2013
आज पुराना इतवार मिला है
जाने क्या ढूँढने खोला था
उन बंद दरवाजों को ....
अरसा बीत गया सुने
उन धुंधली आवाजों को ..
यादों के सूखे बागों में जैसे.
एक गुलाब खिला है ...
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर .
पुराना इतवार मिला है ...
कांच की एक डिब्बे में कैद ...
खरोचों वाले कुछ कंचे ...
कुछ आज़ाद इमली के दाने ....
इधर उधर बिखरे हुए ....
मटके का इक चौकोर लाल टुकड़ा...
पड़ा बेकार मिला है ...
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर ....
पुराना इतवार मिला है ....
एक भूरी रंग की पुरानी कॉपी...
नीली लकीरों वाली ...
कुछ बहे हुए नीले अक्षर..
उन पुराने भूरे पन्नों में ....
स्टील के जंक लगे शार्पनर में पेंसिल का एक छोटा टुकड़ा ....
गिरफ्तार मिला है ....
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर ....
पुराना इतवार मिला है ....
पुराने मोजों की एक जोड़ी... सुराखों वाली ....
बदन पर मिटटी लपेटे एक गेंद पड़ी है .....
लकड़ी का एक बल्ला भी है
जो नीचे से छीला छीला है ..
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर ....
पुराना इतवार मिला है ....
एक के ऊपर एक पड़े ..
माचिस के कुछ खाली डिब्बे ...
पीला पड़ चूका झुर्रियों वाला एक अखबार पड़ा है ...
बुना हुआ एक फटा सफ़ेद स्वेटर .
जो अब नीला नीला है ...
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर ....
पुराना इतवार मिला है ....
गत्ते का एक चश्मा है ...
पीली पस्टिक वाला ....
चंद खाली लिफ़ाफ़े बड़ी बड़ी डाक टिकिटों वाले ...
उन खाली पड़े लिफाफों में भी छुपा एक पैगाम मिला है
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर ....
पुराना इतवार मिला है ....
कई बरसो बीत गए..
आज यूँ महसूस हुआ
रिश्तों को निभाने की दौड़ में ...
यूँ लगा जैसे कोई बिछड़ा....
पुराना यार मिला है ....
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर ....
पुराना इतवार मिला है ....
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर ....
पुराना इतवार मिला है ...
From
http://wordsofmithelesh.blogspot.in/2013/05/blog-post.html?m=1
23 September 2013
Change Yourself ; Make A Better Life
Things are not changed untill you don't move perfectly towards the CHANGE...
Have you ever wondered: What can I do to improve my life right now?
Sometimes a few small changes can have a profound effect on the way we experience life. With that in mind, I invite you to consider the following:
1. Make the choice to be happy. The biggest part of being happy is to simply make up your mind to be a happy person. It’s not about circumstances, it’s about choice.
2. Count your blessings every day. We all have blessings in our lives. Take the time each and every day to appreciate yours, and your view of life will be one of gratitude.
3. Let go of negative thoughts. Don’t poison yourself by dwelling on negative thoughts. Your life reflects your dominate thought patterns, make yours positive.
4. Let go of negative people. Like it or not, your attitude is susceptible to the dominate attitude of those around you. If they are negative, let them go and don’t look back.
5. Be considerate of others. Showing consideration is a way of honoring others. Most people will respond in kind. When you honor others, you honor yourself.
6. Get regular exercise. We all need to move and breath. Too much sitting robs you of the sense of being alive. Buy out time for exercise and you will feel better mentally, emotionally, and physically.
7. Keep learning new things. Learning is what keeps us excited about life. Your mind has an almost infinite ability to take in knowledge. Feed your head.
8. Smile at everyone. A smile can light up a single heart, or a whole room. It’s a wonderful free gift you can give to anyone who looks your way. Contribute to the bank of happiness, smile.
9. Be polite. Manners create an atmosphere of mutual respect and goodwill. Rudeness reveals a complete lack of character. It’s right to be polite and crude to be rude.
10. Practice listening. If we are really listening we will always hear more than words. Try to hear the meaning behind the words without presuming you already know.
11. Build others up. Life can be pretty hard at times and a little encouragement from you can help others feel more confident and capable. Help them out when you can.
12. Find reasons to laugh. With the right attitude we can find humor almost everywhere. Laughter is powerful medicine, so laugh often.
13. Be completely honest. Honesty comes from within. It takes humility and courage to be totally honest with ourselves and others. It’s also incredibly liberating.
14. Be tactful. Being honest does not mean being brutal, even with yourself. Don’t needlessly offend others in the name of honesty, use tact and diplomacy.
15. Look for way to practice giving. There are hundreds of ways to give, and ample opportunities for giving. Not only can something as simple as a smile or kind word can change somebody else’s whole day, but their response can change yours.
16. Be creative. This would be a good place to add your own tip for improving your life right now. Go ahead, be creative!
17. Watch for cause and effect. What you do and say has a huge impact on your life. It is in your best interest to become aware of the connection. Notice the effect of your words and actions so you can make any needed adjustments.
18. View your mistakes as learning experiences. In new activities, it’s rare that we get it right the first time. Evaluating our results and adjusting our approach is how we learn. The better we get at this process the quicker we will produce our intended result.
19. Challenge yourself with large and small goals. Goals give us something to focus on. They also provide a sense of purpose and direction. But remember, you can’t achieve a goal you haven’t set. So, set goals in every area of life.
20. Stop comparing yourself to others.You are not them, so there is no basis for comparison. Strive to be the best possible version of yourself, and learn to celebrate your individuality.
21. Stop judging others. We rarely have as much insight into another persons life as we think we do. If they do something you don’t approve of, judge the act, not the person.
22. Eliminate time wasters from your life. We all want more time, and yet we all waste time on meaningless pursuits. Get rid of them and you will have the time you wished for.
23. Don’t turn everything into a big deal. If you turn little issues into big issues it will rob you of your joy. Give yourself and everyone else a break, learn to let it go.
24. Don’t take yourself too seriously. Learn to laugh at yourself, it’s liberating. When we take ourselves too seriously life becomes a struggle. Again, let it go.
25. Avoid self-imposed limits. Strike all limiting words from your vocabulary, and limiting thoughts from your mind. You can do almost anything you set your mind to, so don’t allow self-imposed limits to hold you back.
26. Don’t try to control other people. Your example may influence others, but you cannot control them. They have the same freedom of choice that you have. Respect that.
27. Actively show appreciation. When someone does something nice for you, show them some appreciation. Acts of kindness, large and small, deserve recognition.
28. Use applied focus sessions to get more done. Applied Focus Sessions – a simple strategy that can increase productivity and free time. Give it a try, it works.
29. Take breaks to clear your mind. You will accomplish more, be more focused, and experience less stress if you give your brain periodic “clearing” breaks throughout the day.
30. Don’t waste energy in pointless debates. Everyone has an opinion, so what? Debating opinions is a colossal waste of time and energy, and it’s pointless. It’s not always important to make your point. Let it go.
31. Be optimistic. Optimism is a wonderful mindset. It focuses your energy on possibility. Your whole world looks brighter through the window of optimism.
32. Set aside time for yourself. It’s great to be productive, but we are not machines. To function at optimal levels you must be well grounded. Make sure you make enough time in your life for you and your loved ones.
33. Believe in yourself. You really are capable of amazing things. The only thing that can get between you and your dreams is self-doubt. Don’t let that happen! Believe in yourself, and surround yourself with others who believe in you.
34. Be yourself and forget about impressing others. No matter what you do, some people will like you and some won’t. Why not just be yourself so that those who do like you, like you for who you really are. Really, being yourself is impressive enough.
35. Accept responsibility for your life. This is the opposite of blaming others for your situation. When you accept responsibility, you assume complete control of your life and close the door on excuses. It’s a powerful state.
36. Strive to create value. The more value you create the more valuable you become to the world around you. Many people are only concerned about creating value for themselves, this is a selfish reality. Contribute the abundance around you and you will experience real abundance in return.
37. Be aware of your spiritual need. Whether you are willing to acknowledge it or not, we all have a spiritual need. Taking steps to fill that need will add a vital dimension to your life.
16 August 2013
Be Proud of You
Nothing is ever wrong. We learn from every step we take. Whatever you did today was the way it was meant to be.
#BeProudofYou #shashikumar
Shashi Kumar 'आँसू' @ShashiAansoo
15 August 2013
19 May 2013
Happy Wedding 8th Anniversary
13 May 2013
Do not let .....
Do not let pain make you hate. Do not let the bitterness steal your sweetness. Take pride that even though the rest of the world may disagree, you still believe it to be a beautiful place.
— KURT VONNEGUT
12 April 2013
31 March 2013
10 Quotes That Changed My Life
By Robin Sharma Author of the #1 Bestseller “The Leader Who Had No Title”
Hi Leader Without a Title/Game-Changer/World-Builder:
Hope you’re superb today. Hope you’re playing full out + expressing your genius + making the world better.
I was in a reflective mood this morning and thought about 10 of the quotes that profoundly influenced the way I think, create and live.
[As you know, all it takes is a single idea in small paragraph to revolutionize the way you play out the rest of your life].
So—to inspire you (and move you to action on your boldest opportunities), I wanted to share them.
Here you go and I’ll be reading your comments at the end:
“Until one is committed, there is hesitancy, the chance to draw back– Concerning all acts of initiative (and creation), there is one elementary truth that ignorance of which kills countless ideas and splendid plans: that the moment one definitely commits oneself, then Providence moves too. All sorts of things occur to help one that would never otherwise have occurred. A whole stream of events issues from the decision, raising in one’s favor all manner of unforeseen incidents and meetings and material assistance, which no man could have dreamed would have come his way. Whatever you can do, or dream you can do, begin it. Boldness has genius, power, and magic in it. Begin it now.” —Johann Wolfgang von Goethe
“I learned this, at least, by my experiment: that if one advances confidently in the direction of his dreams, and endeavors to live the life which he has imagined, he will meet with a success unexpected in common hours.” —Henry David Thoreau, Walden: Or, Life in the Woods
“Why do they always teach us that it’s easy and evil to do what we want and that we need discipline to restrain ourselves? It’s the hardest thing in the world–to do what we want. And it takes the greatest kind of courage. I mean, what we really want.” —Ayn Rand
“Be yourself; everyone else is already taken.” —Oscar Wilde
“The only people for me are the mad ones, the ones who are mad to live, mad to talk, mad to be saved, desirous of everything at the same time, the ones who never yawn or say a commonplace thing, but burn, burn, burn like fabulous yellow roman candles exploding like spiders across the stars.” —Jack Kerouac, On the Road
“It is not the critic who counts; not the man who points out how the strong man stumbles, or where the doer of deeds could have done them better. The credit belongs to the man who is actually in the arena, whose face is marred by dust and sweat and blood; who strives valiantly; who errs, who comes short again and again, because there is no effort without error and shortcoming; but who does actually strive to do the deeds; who knows great enthusiasms, the great devotions; who spends himself in a worthy cause; who at the best knows in the end the triumph of high achievement, and who at the worst, if he fails, at least fails while daring greatly, so that his place shall never be with those cold and timid souls who neither know victory nor defeat.” —Theodore Roosevelt
“Our deepest fear is not that we are inadequate. Our deepest fear is that we are powerful beyond measure. It is our light, not our darkness that most frightens us. We ask ourselves, ‘Who am I to be brilliant, gorgeous, talented, fabulous?’ Actually, who are you not to be? You are a child of God. Your playing small does not serve the world. There is nothing enlightened about shrinking so that other people won’t feel insecure around you. We are all meant to shine, as children do. We were born to make manifest the glory of God that is within us. It’s not just in some of us; it’s in everyone. And as we let our own light shine, we unconsciously give other people permission to do the same. As we are liberated from our own fear, our presence automatically liberates others.” —Marianne Williamson
“To laugh often and love much; to win the respect of intelligent persons and the affection of children; to earn the approbation of honest citizens and endure the betrayal of false friends; to appreciate beauty; to find the best in others; to give of one’s self; to leave the world a bit better, whether by a healthy child, a garden patch or a redeemed social condition; to have played and laughed with enthusiasm and sung with exultation; to know even one life has breathed easier because you have lived—this is to have succeeded.” —Bessie Anderson Stanley (frequently misattributed to Ralph Waldo Emerson)
“Never doubt that a small group of thoughtful, committed, citizens can change the world. Indeed, it is the only thing that ever has.” —Margaret Mead
“Be the change that you wish to see in the world.” —Mahatma Gandhi
27 March 2013
23 February 2013
Thank You.. Love U Always.
Thank You Maharashtra. Thanks Ahmednagar. Love U Always.
Thank You Maharashtra.
Thanks Ahmednagar. Love U Always.
14 January 2013
Happy Makar Sankranti
May this harvest season bring you prosperity and help you to fly high like a kite, let’s celebrate together. HAPPY MAKAR SANKRANTI