जाने क्या ढूँढने खोला था
उन बंद दरवाजों को ....
अरसा बीत गया सुने
उन धुंधली आवाजों को ..
यादों के सूखे बागों में जैसे.
एक गुलाब खिला है ...
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर .
पुराना इतवार मिला है ...
कांच की एक डिब्बे में कैद ...
खरोचों वाले कुछ कंचे ...
कुछ आज़ाद इमली के दाने ....
इधर उधर बिखरे हुए ....
मटके का इक चौकोर लाल टुकड़ा...
पड़ा बेकार मिला है ...
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर ....
पुराना इतवार मिला है ....
एक भूरी रंग की पुरानी कॉपी...
नीली लकीरों वाली ...
कुछ बहे हुए नीले अक्षर..
उन पुराने भूरे पन्नों में ....
स्टील के जंक लगे शार्पनर में पेंसिल का एक छोटा टुकड़ा ....
गिरफ्तार मिला है ....
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर ....
पुराना इतवार मिला है ....
पुराने मोजों की एक जोड़ी... सुराखों वाली ....
बदन पर मिटटी लपेटे एक गेंद पड़ी है .....
लकड़ी का एक बल्ला भी है
जो नीचे से छीला छीला है ..
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर ....
पुराना इतवार मिला है ....
एक के ऊपर एक पड़े ..
माचिस के कुछ खाली डिब्बे ...
पीला पड़ चूका झुर्रियों वाला एक अखबार पड़ा है ...
बुना हुआ एक फटा सफ़ेद स्वेटर .
जो अब नीला नीला है ...
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर ....
पुराना इतवार मिला है ....
गत्ते का एक चश्मा है ...
पीली पस्टिक वाला ....
चंद खाली लिफ़ाफ़े बड़ी बड़ी डाक टिकिटों वाले ...
उन खाली पड़े लिफाफों में भी छुपा एक पैगाम मिला है
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर ....
पुराना इतवार मिला है ....
कई बरसो बीत गए..
आज यूँ महसूस हुआ
रिश्तों को निभाने की दौड़ में ...
यूँ लगा जैसे कोई बिछड़ा....
पुराना यार मिला है ....
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर ....
पुराना इतवार मिला है ....
आज उस बूढी अलमारी के अन्दर ....
पुराना इतवार मिला है ...
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http://wordsofmithelesh.blogspot.in/2013/05/blog-post.html?m=1
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